
जयपुर
पिछले 38 साल से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा में कई पदों पर रहते हुए अपने कार्यों के दम पर हमेशा संघ और भाजपा की पसंद रहे राजस्थान बीजेपी के डॉ. सतीश पूनियां अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चहेते बन गए हैं।
इन कार्यों का रहा बोलबाला
डॉ. पूनियां ने कोरोनाकाल में बीते 4 माह से लगातार खुद सक्रिय रहकर भाजपा की टीम को एकजुट किया और जिस ढंग से जनसेवा के तमाम कार्यों को अंजाम दिया, पीएम केयर फंड में धन के लिए लाखों कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहित किया।
जन सहयोग रसोई के माध्यम से 1.90 करोड़ खाने के पैकेट जरूरतमंदों को बांटे, चरण पादुका अभियान को सफल बनाया, 70 लाख राशन किट का वितरण किया, रेलवे स्टेशन, श्रमिकों के लिए बस स्टैंड पर भोजन-पानी उपलब्ध कराने का काम जैसे अनेक कार्यों के द्वारा पूरी भाजपा को कांग्रेस संगठन से मीलों आगे निकल “जन के नेता” बनने में कामयाबी पाई।
मोदी हो गए गदगद
इसके बाद पिछले शनिवार को जब डॉ. सतीश पूनियां ने दिल्ली, बिहार, आसाम, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश के साथ अपने रिपोर्ट कार्ड प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष पेश किया तो पीएम नरेंद्र मोदी मानो गदगद हो गए।
सभी 7 राज्यों के प्रदेश अध्यक्षों में सबसे पहले डॉ. पूनियां का प्रजेंटेशन था, उन्होंने अपने तय समय में पूरे आत्मविश्वास के साथ पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के समक्ष अपनी 4 माह की रिपोर्ट दी, तो खुद पीएम मोदी भी खुलेमन से उनकी प्रशंसा करने से नहीं चूके।
आरएसएस-एबीवीपी को नेतृत्व
इसके बाद यह तय हो गया कि संघनिष्ठ डॉ. पूनियां की नई टीम के लिए भी उनको अब ज्यादा आज़ादी मिलेगी। माना जा रहा है कि प्रदेश की नई टीम में संघ और डॉ. पूनियां की पसंद ही सर्वोपरि रहने वाली है।
करीब 2 साल पहले तक राज्य में कभी सत्ता और कभी संगठन पर एकछत्र राज करने वाली पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भाजपा कार्यकर्ताओं में विदाई की बातें तो खूब होती रही हैं, किन्तु अब ऐसा लगने लगा है कि डॉ. पूनियां ने संगठन को राजे की छाया से बाहर निकालकर अपनी पकड़ मजबूत बना ली है।
संगठन को गरिमा की तलाश पूरी
जिस संगठन को ओम माथुर के अध्यक्ष पद से हटने के बाद गरिमा की तलाश थी, अब वह वापस प्राप्त होती दिख रही है।
हालांकि, अरुण चतुर्वेदी भी संघ पृष्ठभूमि से आते हैं, लेकिन 2013 में राज्य में भाजपा सरकार में मंत्री बनने के साथ ही वो पद से हटकर केवल सत्ता के बनकर रह गए, उससे पहले भी उनके कार्यकाल को विशेष उपलब्धि के रूप में याद नहीं किया जाता है।
क्योंकि उनके अध्यक्ष रहते नेता प्रतिपक्ष के तौर पर वसुंधरा राजे ने संगठन को अपने कब्जे में रखा था। अतः यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि बीते करीब 17 साल में पहली बार भाजपा संगठन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की छाया से बाहर निकल रहा है।
डॉ. पूनियां भले ही पहली बार जीतकर विधानसभा पहुंचे हों, लेकिन संगठन संचालन का उनको तकरीबन 38 साल का अनुभव है और जिस बेदाग छवि के चलते डॉ. पूनियां पर कोई लांछन नहीं लगा सकता, उससे साबित होता है कि प्रदेश में अब युग परिवर्तन की बयार बहने लगी है।
राजस्थान में ऐसा कोई जिला नहीं है, जहां पर डॉ. पूनियां की टीम नहीं होगी।
केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से प्रजेंटेशन से पहले पीएम मोदी के सामने अध्यक्ष जेपी नड्डा ने खुलकर डॉ. पूनियां की तारीफ की, उससे चर्चा यह भी हो रही है कि आने वाली कार्यकारिणी पहले की तरह सत्ता के बजाए संगठन की होगी, पूर्व मुख्यमंत्री राजे के बजाए भाजपा अध्यक्ष की होगी।
प्रदेश के तकरीबन सभी नेता, राज्य से केंद्र में मंत्री, वर्तमान पदाधिकारी, पुराने कार्यकर्ता भी अब डॉ. पूनियां की लीडरशिप को न केवल स्वीकार करने लगे हैं, बल्कि उनके कुशल नेतृत्व के चलते अपना भविष्य तलाशने के लिए वसुंधरा राजे खेमे से निकलकर डॉ. सतीश पूनियां के साथ संगठन में रहना पसंद कर रहे हैं।
बड़े नेताओं की चाहत अध्यक्ष के साथ रहना
उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र सिंह राठौड़ से लेकर विधायक वासुदेव देवनानी और विधायक रामलाल शर्मा से लेकर एमएलए मदन दिलावर तक डॉ. पूनियां की खुलेआम प्रसंशा कर रहे हैं।
यह बात सही है कि एबीवीपी और आरएसएस के कार्यकर्ताओं को इस बार बरसों बाद पूरा सम्मान मिलने की संभावना है।
जिस तरह से जेपी नड्डा के साथ डॉ. सतीश पूनियां के सम्बंध हैं और दोनों के बीच जुगलबंदी दिखाई दे रही है, उससे कहना कतई गलत नहीं होगा कि जेपी नड्डा के द्वारा डॉ. पूनियां की पसंद वाली कार्यकारिणी की सूची को वरीयता के साथ देखा और स्वीकृत किया जाएगा।
सूची के साथ ही वसुंधरा युग का अंत!
बहरहाल, भाजपा अध्यक्ष डॉ. पूनियां की प्रदेश कार्यकारिणी का इंतज़ार है, जिसकी सूची किसी भी दिन और कभी भी सामने आ सकती है।
यह सूची फिलहाल राष्ट्रीय नेतृत्व के पास पड़ी है और उम्मीद है कि लिस्ट में 75 प्रतिशत नाम एबीवीपी, आरएसएस के लोगों के ही होंगे।
यदि ऐसा हुआ तो यह तय मानकर चलना चाहिए कि प्रदेश संगठन में चलत बन्द होने से वसुंधरा राजे की 2023 में मुख्यमंत्री पद की लालसा के साथ राज्य में वापसी के सभी दरवाजे बंद हो चुके होंगे।