
नेशनल दुनिया जयपुर।
एक सप्ताह पहले चूरू के राजगढ़ में एसएचओ विष्णुदत्त विश्नोई के सुसाइड मामले में अभी तक सीआईडी सीबी के तरफ से की जा रही जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है, लेकिन जिस तरह से सोशल मीडिया पर कैंपेन चला कर एक विधायक के खिलाफ अभियान चलाया गया है, वह राजगढ़ की जनता के लिए न केवल सोचनीय है, बल्कि विकास के मामले में भी काफी कुछ अहम स्थान रखता है।
पूरे प्रकरण में सात ऐसे किरदार हैं, जो इस घटना को कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। स्थानीय जनता और सोशल मीडिया इन किरदारों को लेकर अभी तक सावधान नहीं है। इसी का यह सभी फायदा उठा रहे हैं। आइए आपको बताते हैं इन सभी किरदारों की विस्तार से जानकारी।
जिस दिन सुसाइड हुआ, उसके बाद से ही सीबीआई जांच की मांग उठ रही है। और उसके साथ यह आस भी लगी थी कि जांच में कुछ सामने आए।
शायद उस दिन तक किसी को आईडिया नहीं था, किसी को भी कि मामला इतना ज्यादा उछल जाएगा, यह अंदाजा नहीं था।

अलग-अलग किरदार इस मामले में आ चुके हैं जो लगातार होते जा रहे हैं हालात हो गए हैं। शुरू में इस मामले की जांच सूची जारी निष्पक्ष जांच को लेकर लगातार सवाल उठने के यहां पर पॉलीटिकल एजेंडा जो है, वह चलाने के लिए पहली बार ऐसा हो रहा है।
राजगढ़ में कि सोशल मीडिया कैंपेन भी इस लेवल पर चलाए जा रहे हैं, इस पूरे मामले को लेकर जो जांच को प्रभावित कर सकते हैं। उच्च अधिकारी को जांच सौंपने के बावजूद लोकल लेवल पर पॉलीटिकल अप्रोच बनाई जा रही है, हंगामे किए जा रहे हैं और जांच को प्रभावित करने की पूरी कोशिश की जा रही है।
जब हमने इस पूरे मामले की पड़ताल की और न्यूट्रल होकर सारी चीजों को एनालिसिस करने की कोशिश की तो सामने आया कि इस पूरे मामले में सात ऐसे किरदार हैं, जो मामले को प्रभावित कर रहे हैं।
हम लोग बातचीत किरदारों के ऊपर ही करेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं। सबसे पहला किरदार है विष्णुदत्त विश्नोई खुद, उन्होंने कभी ईमानदार होने का दावा भी किया है और कसमें भी खाई हैं।
डीजीपी का कहना है कि इस तरह का ईमानदार अफसर देखने को नहीं मिलता है। डीजीपी ने भी कहा है कि वह हमारे टॉप टेन ईमानदार अफसरों हैं, उसमें शामिल थे।
लेकिन विष्णुदत्त विश्नोई के एक मित्र जो कि सारे इन सातों के दौर में सबसे पहले नंबर पर आते हैं एडवोकेट गोवर्धन सिंह हैं। गोवर्धन सिंह मूल रूप से बीकानेर से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर एक केम्पेन चला रहे हैं। गोवर्धन सिंह का दावा है कि आत्महत्या करने से पहले बातचीत की थी, लगातार चैटिंग के स्क्रीन शॉट एडवोकेट गोवर्धन सिंह सार्वजनिक कर चुके हैं, तो गोवर्धन सिंह से लगातार उनकी बातचीत हो रही थी।
गोरधन सिंह इस बातचीत के बाद उनको जाना चाहिए और विश्नोई से मिलना चाहिए था, लेकिन यह कैंपियन सोशल मीडिया कैंपेन बना रहे हैं, सारी चीजें सरकार को जांच में सपोर्ट करने के लिए भी उसी इस्तेमाल के तौर पर कर सकते थे, लेकिन गोवर्धन सिंह का कहना है कि सीबीआई जांच इस मामले में करवाई जानी चाहिए और गोवर्धन सिंह लगातार फेसबुक के ऊपर एक के बाद एक एक कैंपेन उन्होंने बना दिया।
पूरी तरह से गोवर्धन सिंह को किस तरह का उपयोग कर रहे हैं। फेसबुक पर मीडिया के इस दौर में सबसे बड़ा एजेंडा ही बनता जा रहा है और इसमें गोवर्धन सिंह को बड़ा फायदा हो रहा है।
यहां पर दो माइलेज वाली हम लोग बात कर सकते हैं। या तो गोवर्धन सिंह का भविष्य में आगामी चुनाव में या उसके अगले चुनाव में कहीं ना कहीं कोई पॉलीटिकल एजेंडा है और गोवर्धन गोवर्धन सिंह आने वाले समय में चुनाव लड़ सकते हैं।
यदि गोवर्धन सिंह चुनाव नहीं लड़ना चाहते तो सोशल मीडिया पर उनको सामने स्पष्ट करना चाहिए कि मेरा कोई चुनावी एजेंडा नहीं है, मैं केवल अपने मित्र की मदद करने के लिए कर रहे हैं, उनके ऊपर कोई पॉलिटिक्स नहीं, मित्रता को न्याय दिलाने के लिए खड़ा हूं।

वह आरटीआई एक्टिविस्ट के तौर पर भी काफी जाने जाते हैं, उनके पेशे में उनको बड़ा फायदा मिला है। जितना एजेंडा ही जितना माहौल बनता जाएगा गोवर्धन सिंह के लिए यह प्लस सी प्लस करता जाएगा, तो गोवर्धन सिंह इस पूरे मामले की पहले किरदार है।
इस पूरे मामले के दूसरे बड़े किरदार हैं राजेंद्र राठौर। राजेंद्र सीनियर बीजेपी लीडर होते हुए भी उनको सड़कों पर उतर पड़ता है और यहां राजेंद्र राठौड़ को कह सकते हैं कि लोकल लेवल पर सस्ती लोकप्रियता भुनाने का एक मौका मिल गया और वह इसको छोड़ना भी नहीं चाह रहे हैं।
आपने देखा होगा कि राजेंद्र राठौड़ ने जैसे ही आत्महत्या का प्रकरण हुआ, उसके बाद में थाने पर पहुंचकर वहां पर उनके जिले के उच्चाधिकारी थे, उनके साथ बदतमीजी से उन्होंने वहां पर काम किया।
तीसरा बड़ा किरदार हैं मनोज न्यांगली। मनोज न्यांगली आकर पूर्व विधायक रह चुके हैं। मनोज न्यांगली यहां पर बसपा से आते हैं। देखने वाली बात ही की युवा लीडर है और यहां पर जो समीकरण बनते हैं, तीन पार्टियों का यहां पर तीनों की अच्छी लड़ाई रहती है, कांग्रेस या बीजेपी और बसपा के बीच में बड़ा दम रखती है।
इन दोनों पार्टियों के बसपा बड़ा महत्व रखती है। विधायक कृष्णा पूनिया के खिलाफ मोर्चा खोलने का मनोज न्यांगली को मौका मिल गया। कोई जरूरी नहीं कि अगली बार मनोज न्यांगली जीतेंगे, कौन जीतेगा यह भविष्य बताएगा, जो काम करेगा राजगढ़ की जनता के लिए वह जीतेगा, लेकिन मनोज न्यांगली निश्चित तौर पर अपनी पॉलिटिकल रोटियां सेकने का काम यहां पर बहुत अच्छे से कर सकते हैं।
राजगढ़ में चौथा सबसे बड़ा किरदार है विधायक कृष्णा पूनिया। विधायक कृष्णा पूनिया इस पूरे मामले के अंदर उनको जबरदस्ती एक तरह से हम लोग कह सकते कि घेरा जा रहा है।
कृष्णा पर आरोप लगाए जा रहे हैं, पॉलीटिकल लीडर्स ने घेराबंदी उनकी की है। वह विधायक पहली बार बनी हैं। उनका कोई पॉलिटिकल बैकग्राउंड भी नहीं है।
ऐसे में विधायक को घेरने की कोशिश की जा रही है और उसमें पॉलीटिकल लीडर्स कोशिश करें अगले चुनाव तक इनको पढ़कर नहीं देते, लेकिन देखने वाली बात है कि कृष्णा पूनिया को लेकर जो मुद्दा बनाया जा रहा है, उनको भद्दी भद्दी गालियां दी जा रही है।
एक महिला विधायक को किसी भी तरह की गालियां सोशल मीडिया पर दी जा रही है, उनको बदनाम करने की पूरी कोशिश की जा रही है। इसका अभी कोई परिणाम आया नहीं है, कोई जांच के परिणाम आएंगे, बात उसके बाद होती है।
पॉलीटिकल एजेंडा बना दिया है। ऐसा लग रहा है कि यह मामला अब कृष्णा पूनिया के खिलाफ निर्णायक की भूमिका में आ गया है।
विधायक पर आरोप लगाया जा रहा है इन्होंने 5 करोड़ का मामला उठाया था, जो कि राजगढ़ थाने का निर्माण करवाया गया था। इसमें विधायक ने 3.50 करोड़ के गबन की बात कही थी। ऐसा कहा जा रहा है।
4 किरदारों में नुकसान में कोई है तो वह है कृष्णा पूनिया। क्योंकि उनकी पॉलिटिकल छवि को नुकसान पहुंचाने लगातार कोशिशें की जा रही हैं नेताओं को मिल गया।

पर इस पूरे मामले में चुप्पी और चूरू के देखने वाली बात यह है कि इन दोनों का नाम यहां पर क्यों आ रहा है। कोई तो कारण है कि बहुत सारे बहुत सारे जिलों में बंधी को लेकर थाने बदनाम होते ऊपर जाती है।
राजगढ़ आने के बाद में भी कोई बोल नहीं रहे, लेकिन क्या यह बंधी प्रकरण से जुड़ा हुआ मामला है। पुलिस अभी जांच कर रही है जो ऊपर से डीजीपी के निर्देशों के बाद में जांच की जा रही है, तो यहां पर अगर कोई बंधी का मामला कोई प्रेशर का मामला ऊपर से आता है या फिर विश्नोई की तरफ से कोई प्रेशर था।
जिन्होंने सुसाइड नोट में भी लिखा है कि मैडम मैं कायर नहीं हूं, बस दबाव नहीं झेल पाया। यहां पर देखने वाली बात है कि अगर ऐसा कोई मामला सामने आता है कि उच्चाधिकारियों का प्रेशर बनाया गया था।
यह बंधी प्रकरण थे, तो ही बहुत ही संवेदनशील मामला है और इसके लिए भी बहुत बड़ी बात होगी कि पूरे राजस्थान में ऐसी आत्महत्याओं के जो मामले हैं और उसमें बंधी प्रकरण सामने आते हैं तो वह बड़े संवेदनशील हैं।
आज हम लोगों ने देखा है कि दौसा में भी एक ऐसा ही मामला है, जिसमें एक पुलिस के कार्मिक ने आत्महत्या की है। अब तक एक सप्ताह में 3 आत्महत्या हो चुकी हैं। लगातार आत्महत्या के मामले बढ़ना तनाव बताता है कि डिपार्टमेंट में किस तेजी से तनाव बढ़ता जा रहा है।
अधिकारियों में भी सुसाइड के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इस तरह की प्रभावना वाला कैंपेन जो पहले कभी नहीं किया गया था, लेकिन नेता भी इस बात को समझने लगे कि सोशल मीडिया में ताकत है और इस पूरे मामले को भुनाने के लिए नेताओं ने कैंपेन चला दिया और चैंपियन भी इस कदर चलाया जा रहा है कि इसमें सोशल मीडिया के उसको कहीं ना कहीं प्रमोट किया जा रहा।
अपनी पॉलिटिकल रोटियां सेकना एक एजेंडा बना देना, किसी व्यक्ति को किस तरह से बदनाम करना, उसके खिलाफ कैसे एजेंडा चलाना और जांच को प्रभावित करना, यह सभी काम सोशल मीडिया पर आजकल बखूबी किए जा रहे हैं।
विष्णुदत्त विश्नोई के सुसाइड प्रकरण में एक और अहम किरदार है हनुमान बेनीवाल। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी की स्थापना के बाद हनुमान बेनीवाल नागौर से निकलकर जोधपुर, बीकानेर, बाड़मेर तक पहुंच गए, लेकिन पड़ोसी जिले चूरू में उनका खास प्रभाव नहीं है। इसको देखते हुए उन्होंने इस मामले को प्रमुखता से उठाया है।
हनुमान बेनीवाल किस तरह से सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं और उनकी फौज पूरी तरह से किसी मुद्दे को लेकर एक साथ उठाती है, इसका उदाहरण विष्णुदत्त विश्नोई की सीबीआई जांच की मांग को लेकर ट्विटर पर ट्रेंड चलाया गया, जो नेशनल ट्रेंड कर रहा था।
इस प्रकरण में सातवां और आखरी किरदार है चूरू जिले की पुलिस अधीक्षक, जिनको संबोधित करते हुए विष्णुदत्त विश्नोई ने सुसाइड करने से पहले सुसाइड नोट में संबोधित किया है उन्होंने लिखा है कि “मैडम मैं कायर नहीं हूं, लेकिन तनाव नहीं झेल पा रहा हूं।” एक अन्य चैट में उन्होंने लिखा है कि स्थानीय विधायक बकवास हैं और उच्च अधिकारी कमजोर हैं।