
नेशनल दुनिया, जयपुर।
कोविड-19 की वैश्विक महामारी के बीच भी भारत में सियासत उफान पर है। केंद्र सरकार का कहना है कि 85% किराया केंद्र सरकार के द्वारा उठाया किया जा रहा है, जबकि 15% स्थानीय सरकारें दे रही हैं।
देश भर में करोड़ों प्रवासी श्रमिकों को अपने घर पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार ने न केवल राज्य सरकारों को छूट दी है, बल्कि रेल की विशेष ट्रेन चलाकर श्रमिकों को घर पहुंचाने का काम किया जा रहा है।

अब इसमें सियासत का पुट यह है कि कांग्रेस के अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि स्थानीय स्तर पर जो भी श्रमिक हैं, उनको रेलवे का किराया देकर विदा किया जाए।
जबकि असलियत यह है कि किसी भी प्रवासी श्रमिक से रेलवे ने किराया नहीं लिया है सभी श्रमिक फ्री यात्रा कर अपने घर पहुंच रहे हैं। बावजूद इसके कांग्रेस पार्टी की राजनीति समझ से बाहर है।

सोनिया गांधी ने एक लिखित बयान जारी करते हुए कहा है कि हमने 1947 के विभाजन की त्रासदी देखी है, तब भी लोगों के पास पैसा नहीं था, भूख से मर रहे थे। भागते दौड़ते मजदूर रास्ते में मर गए थे।
उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि गुजरात में एक कार्यक्रम पर 100 करोड़ पर खर्च किए जा सकते हैं। रेलवे के द्वारा प्रधानमंत्री रिलीफ फंड में 150 करोड़ पर दिए जा सकते हैं, लेकिन क्या रेलवे इन श्रमिकों का किराया वहन नहीं कर सकता?

सोनिया गांधी ने अपने पत्र में लिखा है कि कांग्रेस के द्वारा केंद्र सरकार से श्रमिकों का किराया माफ करने की अपील की थी, लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि न तो केंद्र सरकार ने सुनी और ना ही रेलवे ने बात सुनी है।
मजेदार बात यह है कि रेलवे केवल 85% किराया ले रहा है, बाकी 15% किराया राज्य सरकारों को बैन करने के लिए कहा गया है। भारतीय जनता पार्टी की सरकारों वाली तमाम राज्य सरकारें 15% किराया दे रही है, बावजूद इसके राजनीति अपने रंग पर है।