नई दिल्ली। करीब 2 माह पहले केंद्र की सरकार के द्वारा जिन तीन कृषि बिलों को कानून बनाया गया था, उनके खिलाफ पंजाब में करीब 50 दिन तक रेल रोको आंदोलन के बाद पिछले लगभग सात दिन से किसानों का आंदोलन दिल्ली की ओर कूच कर गया है।
दिल्ली की स्थानीय सरकार ने केंद्र की पुलिस द्वारा मांगे गये स्टेडियम देने से इनकार कर दिया है, जहां किसानों के लिये धरना स्थल बनाने के लिये जगह मांगी गई थी। दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने किसानों की मांगों को जायज कहते हुये यह भी लिख दिया कि किसानों के लिये स्टेडियमों को खुली जेल नहीं बनाने देंगे।
इधर, केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा कहा गया है कि दिसंबर को पीएम मोदी किसानों के प्रतिनिध मंड़ल से मुलाकात करेंगे। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक बयान जारी कर किसानों से मिलने का आश्वासन दे दिया है। मतलब किसानों की बात सुनने को मोदी सरकार तैयार है।
अब किसानों के बिलों की बात करने से पहले उन चेहरों को आप पहचान लिजिये, जो शाहीन बाग के धरने में शामिल थे, बल्कि अगुवाई कर रहे थे। वह बुढ़िया, जिसको दुनिया की सबसे ज्यादा इस्प्रेशन करने वालों लोगों की सूची में एक विदेशी मैग्जीन के द्वारा नवाजा गया था, वही इस किसान आंदोलन में भी शामिल है।
इतना ही नहीं, अपितु शाहीन बाग में शामिल नजीर मोहम्मद नामक शख्स भी शामिल है, जो अब सरदारों की पगड़ी बांधकर शामिल हो गया था। यानी शाहीन बाग में मूसलमान और किसान आंदोलन में सरदार! इसी कमाल के चलते अब इंटेलीजेंस ने सख्ती बरतनी शुरू कर दी है।
इसी तरह से एक संगठन है, जिसका नाम है ‘भारतीय किसान यूनियन—एकता अग्राह’, इस संगठन के मुखिया मूसलमान और सरदार दोनों बताए जा रहे हैं। मजेदार बात यह है कि इस संगठन को किसी भी आंदोलन में शामिल देखा जा सकता है, बशर्ते वह केंद्र की सरकार या फिर भाजपा सरकारों के खिलाफ होना चाहिये।
इस संगठन के द्वारा शाहीन बाग में भी लंगर चलाया गया था, जहां पर सरदार और मूसलमान औरतों के द्वारा खाना बनाया जा रहा था। अब इसी संगठन के चंद लोग हैं, जो किसान आंदोलन में भी शामिल हैं। पहले सामने आ चुका है कि शाहीन बाग में 500 रुपये और 1000 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से भीड़ जुटाने के लिये लोगों को भुगतान किया जाता था।
अब बात करते हैं तीन कृषि कानूनों की। पहला: कानून मंड़ियों की अनिवार्यता खत्म की। जिसके बाद किसान अपना उत्पादन घर बैठे या बाजार में जिसको चाहे बेच सकता है। अब उसको मंड़ियों से मुक्ति दे दी गई है। किसान चाहे तो कंपनियों को सीधा ही माल बेच सकता है।
दूसरा: किसानों के साथ कोई भी कंपनी या व्यक्ति करार करके खेती करवा सकता है, कर सकता है। कंपनी को फसल के साथ करार होगा, न कि जमीन के साथ होगा।
तीसरा: आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन किया गया है। जिसके तहत जरुरी वस्तुओं का संग्रह सीमा समाप्त की गई है। अब स्टॉक करने की लिमिट को हटा लिया गया है। हालांकि, आपात स्थिति में सरकारें इसको फिर से लागू कर सकती हैं।
आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना है कि पहले कानून से मंड़ियों को खत्म करने का काम किया जा रहा है और एमएसपी को भी इससे खत्म कर दिया जाएगा। सरकार ने सफाई दी है कि न तो मंड़ी खत्म होगी और न ही एमएसपी को बंद किया जा रहा है।
दूसरे कानून को लेकर कहा जा रहा है कि इससे किसानों की जमीन हड़पने का काम कंपनियों के माध्यम से किया जा रहा है। जबकि हकिकत यह है कि फसलों का करार होगा, न कि जमीन का। फिर भी किसानों को गलत तरीके से भड़काने का काम किया जा रहा है।
तीसरे कानून को लेकर कारोबारियों को ज्यादा तकलीफ है। उनका मानना है कि इससे बड़ी कंपनियां ही काम कर सकेंगी, क्योंकि उनके पास काफी संसाधन हैं और आम कारोबारी उनसे प्रतियोगिता नहीं कर सकेगा। साथ ही कहा जा रहा है कि इससे महंगाई बढ़ेगी।
इसको लेकर केंद्र सरकार का कहना है कि स्टॉक लिमिट हटाने की वजह से अब देश में उत्पादन अधिक समय तक ठहर सकेगा, वरना उसको निर्यात करना पड़ता है और जब जरुरत होती है तो फिर से आयात करना पड़ता है, इससे व्यापार घाटा बढ़ता है।
महंगाई को लेकर केंद्र सरकार का कहना है कि कानून में पहले ही प्रावधान किया गया है कि अगर महंगाई बढ़ेगी तो उसको नियंत्रित करने के लिये स्टॉक लिमिट को फिर से शुरू करने का भी कानून में प्रावधान किया गया है।
अब सवाल यह उठते हैं कि आखिर इतनी सफाई देने के बाद भी किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं? भाजपा का कहना है कि, जब शाहीन बाग धरना चल रहा था, तब 100 दिन से अधिक समय तक भी सरकार पीछे नहीं हटी, तब कोरोना के कारण धरना समाप्त कर दिया गया। अब आंदोलन करने वालों को चीन के द्वारा फंडिंग मुहइया करवा कर फिर से देश में उपद्रव करने की साजिश की जा रही है।
सत्तारुढ पार्टी का मानना है कि इस आंदोलन में वे ही लोग शामिल हैं जो शाहीन बाग में हिस्सा ले रहे थे। यानी पैसा चीन से आ रहा है और फिर से भारत में गृह युद्ध के लिये चीन प्रयास कर रहा है। भाजपा का मानना है कि देश में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत यूरोप व अमेरिका की बड़ी कंपनिया निवेश कर रही हैं, जो चीन में काम कर रही थीं।
इससे चीन में उत्पादन और रोजगार घट रहा है, तथा भारत में निवेश के साथ उत्पादन बढ़ने और रोजगार के अवसर बढ़ने की संभावना प्रबल होती जा रही है। इसके चलते भविष्य में चीन कभी भी भारत पर दबाव बनाकर झुकाने की कोशिशें में नाकाम हो जाएगा। यही कारण है कि चीन के द्वारा धन मुहइया करवाकर यहां पर अराजकता और गृहयुद्ध के प्रयास किये जाते हैं।